– पंंडित मुस्तफा आरिफ
भारत का संविधान विश्व का एक मात्र ऐसा संविधान हैं जो हमें सर्वाधिक आज़ादी देता हैं, सोचना हमें हैं कि इस आजादी का कैसा उपयोग करें। हमारी बेहतरी सदुपयोग करने में हैं। जैसे यूनिफॉर्म का मुद्दा, ये मज़हबी आस्था से ऊपर अनुशासन का मुद्दा हैं। हम उदाहरण के तौर पर नमाज़ को ले, जिसको अदा करने मैं सर्वाधिक अनुशासन की ज़रूरत होती हैं, आपने अधिकांश मुस्लिम महिलाओं का नमाज़ अदा करते हुए फोटो देखे होंगे, सलीके से दुपट्टे से सिर कवर होगा और उसी दुपट्टे से मुंह ढंका होगा। अब कर्नाटक के स्कूल का मामला लें, वहां का यूनिफॉर्म सलवार कुर्ती दुपट्टा हैं।.भारत के अधिकांश स्कूलों और अब तो कांवेन्ट का भी यूनिफॉर्म यहीं हैं। इसमें दुपट्टे से सिर ढंकने में कोई पाबंदी नहीं है, आप जिस प्रकार नमाज़ में दुपट्टे से सिर और मुंह कवर करते है, आप ऐसा स्कूल के दुपट्टे से भी कर सकते है। कईं मुस्लिम महिलाएं जो हिजाब नहीं पहनती हैं, वो दुपट्टे से बड़े सलीके से ख़ुद को कवर करती हैं, और सड़कों पर दिखती हैं।
फिर हिजाब पहनने पर ही ज़ौर क्यों? 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से साम्प्रदायिक छेड़खानी की घटनाएं बहुत ज़्यादा बड़ गई हैं, ये हिजाब एपिसोड उसी छेडख़ानी का एक प्रयास मात्र है। पिछले कईं वर्षों से वो छात्राएं हिजाब पहन कर उसी स्कूल में जा रही थी, तो फिर अचानक प्राचार्य महोदय को ये अनुचित क्यों लगने लगा? में हिजाब परस्त छात्राओं का बचाव नहीं कर रहा, लेकिन उस तरीकें की आलोचना कर रहा हूँ, जो प्राचार्य ने अपनाया और फिर कर्नाटक सरकार उसमे कूद पड़ी। जबकि यूनिफॉर्म के इतर कुछ भी पहनना तर्कसंगत नहीं है, इसके लिए छात्राओं को दंडित करने से पहले प्राचार्य को पालकों की बैठक बुलाकर समझाइश देना थी। और.स्पष्ट कहना चाहिए था कि ड्रेस कोड का पालन ज़रूरी है, अन्यथा आप कोई दूसरा रास्ता चुनिए। लेकिन इससे सांप्रदायिक छेडख़ानी का छद्म उद्देश्य पूरा नहीं होता।
पांच राज्यों के चुनाव के मद्देनजर मुद्दा हिजाब का कम है हिसाब किताब का ज़्यादा हैं। मतो के धूर्विकरण या मत विभाजन मे ऐसी छेडख़ानी निश्चित मदद करती हैं। एक कालेज मे जब केसरिया दुपट्टा पहने छात्रों ने सांप्रदायिक नारे बाजी की तो एक बुर्काधारी छात्रा ने भी अल्लाहु अकबर का नारा लगा दिया। ग़लत दोनों हैं, शिक्षा संस्थानों के शैक्षणिक वातावरण को प्रदूषित करती हैं। देश का चिंतन करनेवाले विचारक जिनकी संख़्या निश्चित रूप से निहित राजनैतिक स्वार्थ से समंवय का ताना बाना छिन्न भिन्न करने वाले तत्वों से कहीं ज़्यादा हैं, इन घटनाओं से विचलित और द्रवित होते है। ये घटनाएं देश को विकास के एजेंडे से विमुख कर रही हैं, जिस पर ठोस सोच विचार और समग्र चिंतन की ज़रूरत है। जयहिंद वंदेमातरम।