शाजापुर। हजारों वर्ष पूर्व भेदभाव को जड़ से समाप्त करनेे व समरसता का उदाहरण देने के लिए वीर यौद्धा गोगादेवजी ने श्री रतनसिंह वाल्मिकी वाल्मिकी समाज से आते थे। साथ ही बज्जू कोतवाल को अपने शस्त्रागार का मुखिया भी नियुक्त किया। जब वीर सोनापति रतनसिंह युद्धभुमि में वीर गति को प्राप्त हो गए तथा रतनसिंह जी के माता-पिता को पता चला तो वे चित्कार कर उठे। उसी समय 500 वीर सेनानियों व मेहतर समाज को सम्मान देने हेतु गोगादेव जी ने धर्मध्वजा को पवित्र निशान के रूप में पूजने का क्रम प्रारम्भ किया। जिसे उनकी समाधि से स्पर्श करवाकर आज भी बाबा नाहरसिह पाण्डे बाम्हण पूजारी की समाधि पर स्नान कराने का नियम है। यह धर्म ध्वजा वीर गोगाजी और महान योद्धा रतनसिंह जी के विशेष प्रेम का पृतीक है। यह प्रथा पुरे देश में आज भी वाल्मिकी समाज द्वारा पुरे उत्साह सें निभाई जा रही है। जिसमें हिन्दु, मुस्लिम सभी निशान (छड़ी निशान) को श्रद्धाभाव से नमन करते हैं।
शाजापुर म.प्र में भी छड़ी निशान यात्रा 5 स्थानों से प्रारंभ कर पूरे शाजापुर शहर में बड़े ही भव्यता के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। निशान (छड़ी निशान) को उठाने वाले भक्तगण सवा माह तक नंगे पैर रहकर बाल व नाखुन ना काटकर. उपवास रखकर. अपने ही हाथ का बना भोजन कर कठिन साधना करते हैं, उन्हे घोड़ा (घोड़े सिवैये) नाम से पुकारा जाता है। सभी समाज के लोग छड़ी निशान का स्वागत करते हैं। साथ ही विशेष मन्नत वाले श्रद्धालू छड़ी निशान को अपने घर आमंत्रित कर विशेष पूजा अर्चना करते हैं। यह प्रथा हजारों वर्षो से वाल्मिकी समाज के द्वारा आज तक बड़े ही उल्लास व हर्ष के साथ निभाई जा रही है। यात्रा के अंत में छड़ी निशान ओंकारेश्वर नदी घाट गोगामेढ़ी पर बने मंदिर गोगादेव जी मंदिर पर पूजन अर्चन कर छड़ी निशान को विसर्जित किया जाता है। उक्त समारोह श्रावण मास की प्रथमा तिथि से प्रारम्भ होकर भाद्रपद मास की नवमी जो कि गोगादेव जी की जन्नतिथि भी है तक 1 माह 9 दिनों तक श्रद्धाभाव से मनाया जाता है।
यह जानकारी म.प्र. माहावाल्मिकी पंचायत के प्रदेश उपाध्याक्ष नवीन पारछे द्वारा दी गयी। जो शाजापुर शहर में अपने त्याग. समर्पण व समाज सेवा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।
