कर मान्यता अनुसार गाय के द्वारा कुचला गया। उल्लेखनीय है कि दीपोत्सव के अगले दिन पड़वा पर शहरवासियों ने प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हुए सुबह जल्दी स्नान कर मंदिरों में दर्शन किए और इसके बाद गोवर्धन पर्वत स्वरूप गोबर से पर्वत का निर्माण कर उसकी पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की। शहर में गोर्वधन पूजा के साथ ही लोगों ने गोवंश की पूजा-अर्चना भी की। इस दिन पशुओं का विशेष शृंगार किया गया और उनकी पूजा कर आतिशबाजी कर लोगों ने अपने उत्साह का परिचय दिया।
गोबर में फेंकने की निभाई परंपरा
प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी दीपावली के दूसरे दिन गवली समाज द्वारा वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया गया। इस दिन समाज द्वारा गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के साथ ही बच्चों को गोबर में गिराया गया। समाजजनों ने बताया कि मान्यतानुसार बीमारी से बचाव और वर्षभर सुरक्षा की कामना लेकर बच्चों को गोबर से नहलाया जाता है और यह परंपरा महाभारत काल से ही समाज निभाता आ रहा है।
मंदिरों में भी हुए आयोजन
स्थानीय सोमवारिया बाजार स्थित पुष्टिमार्गीय गोवर्धननाथ मंदिर में इस दिन गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन किया गया। इस दिन मंदिर में भगवान को पकवानों का भोग लगाया गया और गोवर्धन पूजा की गई। इसके बाद गौ माता की पूजा भी श्रद्धालुओं द्वारा की गई। इसीके साथ शहर के अन्य श्रीकृष्ण मंदिरों में भी भगवान को 56 भोग लगाकर महाआरती की गई। साथ ही महिलाओं ने भजन-कीर्तन भी किए।